दाल, राजमा और छोले को कितनी देर भिगोना चाहिए? एक्सपर्ट से जानें गैस और अपच से बचने का सही तरीका

राजमा-चावल, छोले-भटूरे या फिर माँ के हाथ की बनी दाल मखनी का नाम सुनते ही हम में से ज़्यादातर लोगों के मुँह में पानी आ जाता है। दालें और फलियाँ (Legumes) भारतीय भोजन का आधार हैं, जो प्रोटीन, फाइबर और ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। लेकिन, एक आम समस्या जो इन स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ जुड़ी है, वह है पेट में भारीपन, गैस, और ब्लोटिंग। कई लोग तो राजमा खाने से गैस की समस्या के डर से इसे खाने से ही बचते हैं।
इस लेख के लिए अपने शोध में, मैंने पाया कि यह समस्या डिश की नहीं, बल्कि उसे बनाने की तैयारी में की गई एक छोटी सी गलती की हो सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, दाल, राजमा और छोले को कितनी देर भिगोना चाहिए, यह जानना आपके पाचन स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकता है। यह सिर्फ एक पारंपरिक नुस्खा नहीं, बल्कि इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण हैं जो दाल को न केवल सुपाच्य बनाते हैं बल्कि उसकी पौष्टिकता को भी बढ़ाते हैं।
भिगोना क्यों है ज़रूरी?
अक्सर हमारी दादी-नानी दाल-राजमा भिगोने की सलाह देती थीं, लेकिन क्यों? यह समझना महत्वपूर्ण है, जैसा कि प्रमुख अध्ययनों से पता चलता है, कि भिगोने की प्रक्रिया कई ऐसे यौगिकों (compounds) को निष्क्रिय कर देती है जो पाचन में रुकावट पैदा करते हैं।
- एंटी-न्यूट्रिएंट्स को बेअसर करना: दालों और फलियों में फाइटिक एसिड (Phytic Acid) और लेक्टिन्स (Lectins) जैसे एंटी-न्यूट्रिएंट्स होते हैं। फाइटिक एसिड शरीर में आयरन, जिंक और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के अवशोषण को रोकता है। वहीं, लेक्टिन्स पाचन तंत्र में जलन पैदा कर सकते हैं। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार, भिगोने और पकाने से इन एंटी-न्यूट्रिएंट्स की मात्रा काफी हद तक कम हो जाती है।
- गैस बनाने वाले यौगिकों को हटाना: पेट में गैस बनने के कारण में से एक दालों में मौजूद ओलिगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides) नामक जटिल शुगर है। हमारा शरीर इन्हें आसानी से पचा नहीं पाता। जब ये हमारी बड़ी आंत में पहुँचते हैं, तो वहाँ मौजूद बैक्टीरिया इन्हें फर्मेंट करते हैं, जिससे गैस, ब्लोटिंग और पेट दर्द होता है। भिगोने से ये शुगर पानी में घुल जाते हैं, जिसे हम बाद में फेंक देते हैं।
- पाचन को आसान बनाना: भिगोने की प्रक्रिया से दालों में मौजूद जटिल कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन टूटने लगते हैं। यह एक तरह से “पूर्व-पाचन” (pre-digestion) जैसा है, जिससे पकाने के बाद शरीर के लिए इन्हें पचाना और पोषक तत्वों को सोखना आसान हो जाता है।
दाल, राजमा और छोले को कितनी देर भिगोना चाहिए
हर दाल और फली की बनावट अलग होती है, इसलिए उन्हें भिगोने का समय भी अलग-अलग होता है। नीचे एक आसान गाइड दी गई है:

1. कठोर और बड़ी फलियाँ (8 से 12 घंटे या रात भर)
ये सबसे सघन होती हैं और इन्हें नरम होने और एंटी-न्यूट्रिएंट्स को तोड़ने के लिए सबसे अधिक समय चाहिए।
- राजमा (Kidney Beans): कम से कम 10-12 घंटे। इन्हें रात भर भिगोना सबसे अच्छा माना जाता है।
- छोले/काबुली चना (Chickpeas): 8-12 घंटे। अगर छोले बहुत पुराने हैं, तो थोड़ा और समय लग सकता है।
- काला चना (Black Chickpeas): 10-12 घंटे।
- साबुत उड़द (दाल मखनी के लिए): 8-10 घंटे।
विशेषज्ञ टिप: इन फलियों को भिगोते समय, 4-5 घंटे बाद एक बार पानी बदल दें। इससे फर्मेंटेशन का खतरा कम होता है।
2. साबुत दालें (छिलके सहित) (6 से 8 घंटे)
ये फलियों से थोड़ी नरम होती हैं लेकिन इन्हें भी पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है।
- साबुत मूंग (Whole Green Gram): 6-8 घंटे।
- साबुत मसूर (Whole Brown/Black Lentil): 6-8 घंटे।
- मोठ (Moth Beans): 6-8 घंटे।
3. स्प्लिट दालें (छिलके वाली और बिना छिलके वाली) (2 से 4 घंटे)
इन दालों से छिलका हटा होता है या ये टूटी हुई होती हैं, इसलिए जल्दी नरम हो जाती हैं।
- चना दाल (Split Bengal Gram): 4-6 घंटे (यह बाकी स्प्लिट दालों से थोड़ी सख्त होती है)।
- अरहर/तूअर दाल (Split Pigeon Peas): 2-3 घंटे।
- उड़द दाल धुली (Split White Gram): 2-4 घंटे।
4. मुलायम और जल्दी पकने वाली दालें (30 मिनट से 1 घंटा)
ये दालें बहुत नरम होती हैं। इन्हें न भी भिगोया जाए तो पक जाती हैं, लेकिन थोड़ी देर भिगोना पाचन के लिए बेहतर है।
- मूंग दाल धुली (Split Yellow Mung Beans): 30 मिनट से 1 घंटा। यह सबसे सुपाच्य दालों में से एक है।
- मसूर दाल (Red Lentils): 30 मिनट पर्याप्त हैं।
“भिगोने की प्रक्रिया दालों की ‘जैव उपलब्धता’ (bioavailability) को बढ़ाती है। इसका मतलब है कि आपका शरीर दाल में मौजूद पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित कर पाता है। यह केवल गैस कम करने के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण पोषण प्राप्त करने के लिए भी एक अनिवार्य कदम है।” – डॉ. नेहा पाठक, रजिस्टर्ड डायटीशियन, [संस्थान का नाम]]
बेहतर पाचन के लिए अतिरिक्त टिप्स
भिगोने के अलावा, कुछ और तरीके हैं जिनसे आप दाल को और भी सुपाच्य बना सकते हैं:
- हमेशा ताजा पानी इस्तेमाल करें: जिस पानी में दाल या राजमा भिगोया है, उसे पकाने के लिए कभी इस्तेमाल न करें। उसे फेंक दें क्योंकि उसी में सारे अवांछित तत्व (एंटी-न्यूट्रिएंट्स, ओलिगोसैकेराइड्स) घुले होते हैं।
- पकाते समय झाग हटाएं: दाल उबालते समय ऊपर जो सफेद झाग आता है, उसे चम्मच से निकाल कर फेंक दें।
- पाचक मसालों का प्रयोग करें: तड़के में हींग, जीरा, अदरक और थोड़ी सी हल्दी का प्रयोग करें। ये मसाले पारंपरिक रूप से अपने पाचक गुणों के लिए जाने जाते हैं।
- दबाव में पकाएं (Pressure Cook): प्रेशर कुकर में पकाने से न केवल समय बचता है, बल्कि उच्च तापमान लेक्टिन्स जैसे बचे-खुचे एंटी-न्यूट्रिएंट्स को भी प्रभावी ढंग से नष्ट कर देता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न/उत्तर
अगर मैं राजमा या छोले भिगोना भूल जाऊं तो क्या कोई उपाय है?
हाँ, एक “क्विक सोक” विधि है। राजमा या छोले को धोकर एक बड़े बर्तन में डालें, पर्याप्त पानी भरें और तेज आंच पर उबाल लें। 2-3 मिनट उबलने के बाद, गैस बंद कर दें, बर्तन को ढक दें और इसे एक से डेढ़ घंटे के लिए छोड़ दें। इसके बाद पानी फेंक कर ताजे पानी में पकाएं।
क्या दालों को अंकुरित करके खाना बेहतर है?
हाँ, अंकुरित करना (Sprouting) भिगोने से भी एक कदम आगे है। अंकुरण की प्रक्रिया में एंटी-न्यूट्रिएंट्स और भी कम हो जाते हैं और विटामिन C और B जैसे पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। अंकुरित दालें पचाने में और भी आसान होती हैं।
क्या डिब्बाबंद (canned) छोले या राजमा को भी भिगोने की ज़रूरत है?
नहीं, डिब्बाबंद बीन्स पहले से ही पके हुए होते हैं। हालांकि, उन्हें इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह से धो लेना चाहिए ताकि अतिरिक्त सोडियम और प्रिजर्वेटिव निकल जाएं।